एस बी आई- आर-सेटी उमरिया
बिचका के बारे में ----------------------
- किसी क्षेत्र में बिचका , तो कही बिजूखा और कही इसे कागभागोडा के नाम से जाना जाता है .
- यह खेत में गाड़ा हुआ छोटा बांस या डंडा जिस पर काली हांड़ी टंगी होती है और जिसका मुख्य प्रयोजन पशु पक्षियो को डराकर फसल की रक्षा करना होता है
- यह तय है कि आदिम युग की यह कला सम्पूर्ण दुनिया में फसलो की रक्षा के लिए उपयोगी रही है
- ३००० वर्ष पहले दुनिया का पहला ' बिचका ' इजिप्त देश की नील नदी के किनारे गेंहू के खेतो में लगाया गया था
- ग्रामीण भारत में ' बिचका ' फसलो की रक्षा हेतु एक माध्यम है , जिसमे कृषक मनुष्य की आकृति का निर्जीव पुतला खेत में खड़ा करके घर में चैन से सोता है एवं यह निर्जीव ' बिचका ' अपने दायित्यो का निर्वाह करते हुए कृषक के घर में सम्पन्नता फ़ैलाने में मदद करता है
- एस बी आई आर - सेटी उमरिया के ट्रेनीस के बीच ' बिचका ' के महत्व एवं बिचका के माध्यम से सामाजिक चेतना जगाने की सकारात्मक सोच पैदा हुई , एवं आर - सेटी के ट्रेनीस का मानना है कि निर्जीव बिचका फसलो कि रक्षा के साथ मानवीय सवेदनाओ को उत्त्प्रेरित कर सामाजिक परिवर्तन में भी अपनी भूमिका निभा सकता है
- आर-सेटी उमरिया का प्रयास है कि ' बिचका ' के हाँथो से सामाजिक चेतना भरे सन्देश जैसे - नशा मुक्ति , विकृत कुरीतियो से बचाव , समग्र स्वच्छता अभियान . आदि से संबधित हो सकते है .
- आर-सेटी उमरिया कि सोच है कि खेत में खड़ा बिचका पशु -पक्षियों के लिए डरावा हो सकता है पर समाज सेवा का सन्देश लेकर वह समाज के हर व्यक्ति का परममित्र बनकर खेत और समाज की रखवाली कर सकता है
- आर-सेटी उमरिया लोककला के अनछुए पहलू ' बिचका ' के मार्फ़त ट्रेनीस में लोककला के महत्व को उजागर कर लोककला के विविध पहलुओ के विस्तार हेतु पहल करती है
-प्रस्तुति-
जय
प्रकाश पाण्डेय
निदेशक
एस
बी आई
आर-सेटी
उमरिया
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